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देवता: अग्निः ऋषि: विश्वामित्रो गाथिनः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

धि꣣या꣡ च꣢क्रे꣣ व꣡रे꣢ण्यो भू꣣ता꣢नां꣣ ग꣢र्भ꣣मा꣡ द꣢धे । द꣡क्ष꣢स्य पि꣣त꣢रं꣣ त꣡ना꣢ ॥१४७९॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे । दक्षस्य पितरं तना ॥१४७९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धि꣣या꣢ । च꣣क्रे । व꣡रे꣢꣯ण्यः । भू꣣ता꣡ना꣢म् । ग꣡र्भ꣢꣯म् । आ । द꣣धे । द꣡क्ष꣢꣯स्य । पि꣣त꣡र꣢म् । त꣣ना꣢꣯ ॥१४७९॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1479 | (कौथोम) 6 » 3 » 15 » 3 | (रानायाणीय) 13 » 5 » 3 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमेश्वर क्या करता है यह कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(वरेण्यः) वरणीय और श्रेष्ठ वह अग्नि नामक परमात्मा, अपने उपासक को (तना धिया) विस्तृत बुद्धि के दान द्वारा (दक्षस्य) मनोबल का (पितरम्) पिता (चक्रे) बना देता है। साथ ही (भूतानाम्) उत्पन्न प्रशस्त जनों में (गर्भम्) सद्गुणों के गर्भ को (आ दधे) स्थापित करता है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

उपासना किया हुआ जगदीश्वर उपासक का सखा बनकर उसके बल, विज्ञान और अध्यात्म-धन को बढ़ाता है ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा, आनन्दरसप्रवाह और मानव-प्रेरणा का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ तेरहवें अध्याय में पञ्चम खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरः कमुपकारं करोतीत्याह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(वरेण्यः) वरणीयः श्रेष्ठश्च असौ अग्निः परमात्मा, स्वकीयमुपासकम् (तना धिया) विस्तीर्णबुद्धिप्रदानेन (दक्षस्य) मनोबलस्य (पितरम्) जनकम् (चक्रे) करोति। किञ्च (भूतानाम्) उत्पन्नानां प्रशस्तजनानाम् (गर्भम्२) सद्गुणगर्भम् (आ दधे) स्थापयति ॥३॥३

भावार्थभाषाः -

उपासितो जगदीश्वर उपासकस्य सखा भूत्वा तस्य बलं विज्ञानमध्यात्मसम्पत्तिं च वर्धयति ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मविषयस्यानन्दप्रवाहस्य मानवप्रेरणायाश्च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्ज्ञेया ॥